सिवनी जिले में पर्यटन | Travel & tourism in Seoni District

इंदिरा गांधी पेंच राष्ट्रीय उद्यान कर्माझिरी :– सिवनी जिले में पर्यटन के रूप में पेंच राष्ट्रीय उद्यान प्रसिद्व है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में भ्रमण के लिए जाने के लिए दो गेट है। पहला गेट सिवनी से नागपुर रोड पर 20 कि.मी. ग्राम सुकतरा से पश्चिम दिशा में लगभग  20 कि.मी. की दूरी पर ग्राम  कर्माझिरी से तथा दूसरा सिवनी से नागपुर रोड पर सिवनी से 50 कि.मी. की दूरी पर ग्राम खवासा से 12 कि.मी. पश्चिम में टुरिया ग्राम से भ्रमण की सुविधा में है। दोनो गेट पर वन विभाग, पर्यटन विभाग एवं प्राइवेट होटल एवं वाहनों की सुविधा पर्यटकों के लिए उपलब्ध रहती है। पार्क माह अक्टूबर से पर्यटकों के भ्रमण के लिए खोला जाता है तथा जून- जुलाई के बाद भ्रमण बंद कर दिया जाता है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान में बाघ, नीलगाय, बारहसिंगा, हिरन, मोर, बन्दर, काले हिरन, सांभर, जंगली सुअर, सोनकुत्ता एवं अन्य जानवर तथा अनेक प्रकार के पक्षी बहुतायत में पाये जाते है। उद्यान के बीचों बीच से पेंच नदी बहती है। नदी पर एक छोटा सा तालाब है, जिस पर तोतलाडोह बांध भी बना हुआ है जहां पर बिजली बनाई जाती है एवं मछली पालन भी किया जाता है। इसकी स्थापना 1984 में की गई थी।
अन्य पर्यटन केन्द्र एवं धार्मिक केन्द्रः–
श्री गुरू रत्नेश्वर धाम दिघोरीः श्री गुरूरत्नेश्वर धाम दिघोरी में विश्व का अनूठा स्फटिक का शिवलिंग स्थापित है। इसकी स्थापना सिवनी निवासी एवं द्वि पीठाधीश्वर शंकाराचार्य श्री स्वरूपानंद जी महाराज द्वारा की गई है। दिनांक 15 से 22 फरवरी 2002 में एक सप्ताह धार्मिक मेला का आयोजन किया गया और स्फटिंग के अनूठे शिवलिंग की स्थापना की गई। इस दौरान देश की समस्त पीठों के शंकराचार्य के अलावा देश में प्रचलित सभी धर्मो के महान धर्माचार्य पधारे थे। स्फटिंक का शिवलिंग बर्फ की चट्टानों के बीच कई वर्षो तक पत्थर के दबे रहने से ऐसा शिविलिंग निर्मित होता है। यह शिवलिंग काश्मीर से यहां लगाया गया था। इसके पूजन का भारतीय धर्म ग्रन्थों में बहुत महत्व बताया गया है। ग्राम दिघोरी जिला सिवनी में शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज का जन्म जिस स्थान पर हुआ था, वही पर स्फटिंग के मणि शिवलिंग का  वैदिक मंत्रोच्चार के बाद चारों पीठों एवं अन्य धर्माचार्य की उपस्थिति में स्थापित किया गया है। इसलिये श्री गुरूरत्नेश्वर धाम दिघोरी पहुंचने के लिए सिवनी से जबलपुर रोड पर लगभग 10 कि.मी.की दूरी पर मुख्य मार्ग पर ग्राम राहीवाडा बसा है। इस ग्राम के पश्चिम दिशा में एक बहुत बडा गेट बनाया गया है। गेट पर भगवान श्री शिवजी का परिवार विराजित है। मुख्य मार्ग से 8 कि.मी. की दूरी पर पश्चिम में ग्राम दिघोरी में श्री गुरू रत्नेश्वर धाम का विशाल मंदिर दक्षिण शैली में बना है। मंदिर में सीढी चढने के बाद एक हाल में श्री नन्दी विराजित है। इसके बाद एक गर्भगृह में स्फटिक शिवलिंग स्थापित है। मंदिर में दर्शन और पूजन से समस्त पापों का नाश होता है। यहां पर स्वंय के वाहन से पहुंचा जा सकता है। यहा प्रतिदिन धर्मावलम्बी आते रहते है। मकर संक्राति एवं महाशिवरात्रि को मेला भरता है। मंदिर के पास से पवित्र वैनगंगा नदी बहती है।
श्री शिवधाम मठघोघरा: जिला मुख्यालय से जबलपुर रोड पर लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर स्थित विकासखंड लखनादौन है। लखनादौन मुख्यालय से पश्चिम दिशा में लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर ग्राम मठघोघरा है। यह प्रसिद्व धार्मिक एवं पर्यटन स्थल है। इसमें दो पहाडी के बीच में एक गहरी गुफा है जिसमें भगवान शिव जी की मूर्ति एवं शिवलिंग बहुत ही प्राचीन स्थित है। यहां पर पूरे वर्ष भर पहाड से जलधारा बहती रहती है। पानी एक गहरे कुंड में गिरता है। यहां पर महाशिवरात्री पर बहुत बडा मेला लगभग एक सप्ताह का लगता है। यहां पर वनों की अधिकता है। ऊचे ऊचे पहाड एवं घने वृक्ष मन को मोह लेते है। यहां पर आमजन पिकनिक मनाने हमेशा आते जाते रहते है। यहां स्वंय के वाहन से जाया जा सकता है। यहां पर पर्यटन की संभावनायें है।
वैनगंगा नदी का उद्गम स्थल मुंडारा :– सिवनी जिले में  वैनगंगा नदी का उदगम स्थल सिवनी से नागपुर रोड पर 18 कि.मी. की दूरी पर बसे  ग्राम गोपालगंज से लगभग 6 कि.मी. पूर्वी दिशा में ग्राम मुंडारा है। मुंडारा गांव के पास स्थित रजोलाताल से वैनगंगा नदी एक कुंड से निकलती है एवं मुख्य मार्ग पार करते हुए ग्राम मुंगवानी, दिघोरी, छपारा, मझगवा, केवलारी से होते हुए बालाघाट जिले मे प्रवेश करती है। उद्गम स्थल पर स्वंय के वाहन एवं पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से जाया जा सकता है। यहां मकर संक्राति में एक सप्ताह का मेला लगता है। यह नदी सिवनी की अर्द्व परिक्रमा करती हुई बालाघाट, भंडारा तथा चांदा जिले से बहती हुई वर्धा नदी में मिलती है। यहां से इसका नाम प्राणहिता हो गया है। यह एक पौराणिक नदी है और प्रत्येक पुराण में वेणु अथवा वेण्या के नाम से इसका वर्णन मिलता है।  2 जून 1928 को नगर में मूर्तियों का भ्रमण कराया गया तथा 3 जून 1928 को मुंडारा के मंदिरों में मूर्ति स्थापित की गई। 4 जून से भागवत कथा का वाचन पं. शिवराम शास्त्री द्वारा किया गया।इस कार्य में सिवनी में पदस्थ अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर श्री जे.जे. बोर्न का सहयोग भी रहा। सन 2000 में  नगर के पटवा समाज द्वारा मंदिर में संगमरमर का फर्श बनाया गया। मंदिर में श्री आबुवाले बाबा द्वारा भंडारा कराया जाता रहा है।  इस नदी की उत्पत्ति के विषय में दो दन्तकथायें प्रचलित है।
प्रथम पूर्व काल में एक गोंड की गंगा नाम पुत्री थी जिसका विवाह बैनी नामक एक युवक से तय हो चुका था और गंगा के पिता ने उसे अपने यहां की रख लिया था। गोंड ने बैनी को एक कुंआ खोदने के काम में लगा दिया। एक दिन जब बैनी एक चट्टान खोद कर अलग कर रहा था तब एकाएक पानी की तेजधार फूट पडी और वह जल में डूब गया। संध्या समय जब बैनी घर नही आया तो गंगा उसे खोजने गई बैनी को वहां न देखकर वह जोर-जोर से पुकराने लगी उसी समय पानी की धार से दो हाथ ऊपर की ओर निकले । गंगा पहचान कई कि वे दानों हाथ बैनी के ही है। वह ऊचे टीले पर से उन हाथों के बीच में कूद पडी। उन हाथों में गंगा को पानी के भीतर खींच लिया और दोनों पानी की धार में बहते हुए चले गये। अन्त में वर्धा नदी में पहुंचते ही बैनी और गंगा दोनों जीवित हो गये। इसलिए इस  नदी का नाम बैनगंगा पडा । बैनगंगा नदी पर वसुन्धरा पर दो पवित्र प्रेमियों की पावन गाथा का प्रतीक है। इसलिये इसके जल में पवित्रता,निर्मलता और आत्मीयता का रस घुला हुआ है। बैनगंगा के जल की सबसे बडी विशेषता यह है कि जो भी एक बार इस का पान कर लेता है वह इस मिट्टी का ही होकर रह जाता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण नगर के कोने-काने में अलग-अलग प्रांत और नगरों से आये असंख्य आत्मीयजन हैं जिन्होंने सिवनी को अपनी कर्मभूमि तो बनाया ही आज उनके संतानों की जन्मभूमि भी बन गई। नवीन कालोनियां हमारे नगर और बैनगंगा के जल का गुणगान करती प्रतीत होती हैं।
द्वितीय — इस धारणा के अनुसार प्राचीन काल में भंडक देश भंडारा महाराष्ट्र में एक धर्मात्मा राजा रहा करते थे जिनका नाम वेन था। वे भागीरथी गंगा के अनन्य भक्त थे तथा प्रतिदिन आकाश मार्ग से प्रयाग राज गंगा स्नान करने जाते थे, स्नानोपरांत ही वे अन्न जल ग्रहण करते थे। वृद्वावस्था में इस दिनचर्या से उन्हें कष्ट होने लगा अतः उन्होंने मां गंगा से निवेदन किया कि है मां कोई उपाय बताइये कि अंतिम समय मेरा नियम भंग न हो गंगा जी प्रगट हुई तथा उन्होंने उनसे कहा कि तुम मेरे जल को एक शीशी में भरकर ले जाओं और जिस स्थान पर तुम इस शीशी को रखोगे तथा जल बहाओगे वहां से एक नदी प्रगट हो जायेगी और मेरे ही समान पुण्य फल दायिनी होगी। राजा बेन एक शीशी में गंगाजल भरकर अपने राज्य की ओर लौट पडे। मुडारा ग्राम के पास विश्राम करते समय उन्होंने वह शीशी भूमि पर रख दी जो अचानक फूट पडी और वहां से एक जल धारा प्रगट हो गई। राजा को अपनी असावधानी पर दुख हुआ उन्होंने गंगाजी से कहा कि उसका राज्य यहां से बहुत दूर है। गंगाजी उनकी प्रार्थना पर पहिले उत्तर की ओर फिर पूर्व की ओर जाने के बाद दक्षिण की ओर मुडी और राजा वेन के महल के के किनारे से बहती हुई गोदावरी नदी में जाकर मिल गई। सिवनी की परिक्रमा करने के क्रम में यह सिवनी जिले के इतिहास के पथम मुख्यालय चांवडी से होती हुई पश्चिम में लखनवाडा होते हुए पुसेगढ (पुसेरा) तथा मुंगवानी होते हुए भगवान शिव के अवतार परमपूज्य शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी की जन्म स्थली दिघौरी पहुंचती है, वहां से बंडोल, बखारी, गंगा ढाना होते हुए सिवनी के पूर्व मुख्यालय छपारा पहुंचती है। छपारा के बाद बैनगंगा भीमगढ पहुंचती है यहां इस नदी पर एशिया महाद्वीप का मिट्टी का सबसे बडा बांध बना है इसी बांध से वर्तमान में सिवनी नगर को जलापूर्ति की जा रही है।
भीमगढ के पश्चात यह देवघाट, मछगवां, मोनीबाबा का आश्रम, कोठीघाट होते हुए सिद्वघाट (केवलारी से 18 कि.मी.दूर ) से होती हुई सरेखा के पास हिर्री नदी से मिलती है। इसके बाद यह बालाघाट जिला होते हुए महाराष्ट्र में प्रवेश करती है जहां राजा वेन की राजधानी भांडक (भंडारा) है यहां इस नदी का पाट दर्शनीय है इस नदी से मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र के बहुत बडे क्षेत्र में सिंचाई होती है। इसी कारण यह पवित्र नदी प्राणदायिनी कहलाती है।
मां काली जी का मंदिर आष्टा :– सिवनी जिले में 20 कि.मी. की दूरी पर बरघाट विकासखंड है। यहां से 10 कि.मी. पर ग्राम धारनाकला है। धारनाकला से दक्षिण दिशा मे लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर ग्राम आष्टा बसा हुआ है। आष्टा में मॉ काली जी की काले पत्थर की अष्टभुजी प्रतिमा है। यहां पर अन्य मंदिर भी है।  मंदिर पुरातत्व विभाग की देखरेख मे है। यहां वर्ष में दोनों नवरात्र मे मेला भरता है। यहां पर स्वंय के वाहन अथवा पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से पहुचा जा सकता है। कहा जाता है कि वनवास के समय भगवान श्रीराम भी यहां पर आये थे।
मां बंजारी देवीजी का मंदिर छपाराः--सिवनी से जबलपुर मार्ग पर विकासखंड छपारा जिला मुख्यालय से लगभग  35 कि.मी. की दूरी पर बसा है। यहां से जबलपुर मार्ग पर आगे जाने पर लगभग 10 कि.मी.दूरी पर मुख्य मार्ग पर बंजारी देवी मां का सुन्दर मंदिर पहाडी के पास बना है। मंदिर में बंजारी देवी की सुन्दर प्रतिमा स्थापित है। मंदिर के सामने श्री हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा के ऊपर दोनों कंधो पर भगवान श्रीराम एवं लक्ष्मण बैठे हुए है।  यहां से गुजरने वाली सवारियां रूककर दर्शन करती है, यहां प्रतिदिन भक्तो की भीड लगी रहती है। यहां दोनों नवरात्र में मेला तथा दीपावली के आसपास मढई मेला भी लगता है। यहां पर शादी-विवाह के आयोजन के लिये धर्मशाला भी बनी है।
मां वैष्णव देवी जी का मंदिर सिलादेही — सिवनी से नागपुर रोड पर लगभग 10 कि.मी.की दूरी पर स्थित शीलादेही ग्राम में गांव के पीछे पहाडी पर मां वैष्णव देवी की गुफा पूर्वी दिशा में स्थित है। ग्राम में कुछ वर्ष पूर्व शंकराचार्य महाराज स्वामी स्वरूपानंदजी द्वारा भागवत कथा का आयोजन किया गया था। इसके बाद ग्राम में स्थित पहाडी में श्री शंकराचार्य द्वारा पूजन किया गया था इसके बाद मां वैष्णव देवी की मूर्तियां स्वंय प्रकट हुई थी। पूजन के बाद यहां से जलधारा भी निकली थी जिसे महाराज शंकराचार्य द्वारा अमर गंगा का नाम दिया गया है।  इस स्थान को वैष्णव देवी की गुफा के नाम से जाना जाता है।
श्री सिद्व शनिधाम मंदिर पलारी टेकरी इसी ग्राम से थोडा आगे चलने पर नेशनल हाईवे के पश्चिम में बंजारी टेकरी पलारी एवं चावडी के पास  विश्व का द्वितीय स्वंयभू सिद्व श्री शनिधाम मंदिर है।  मूर्ति एक पहाडी पर स्थित है। यहां प्रति शनिवार एवं मंगलवार को श्रद्वालुओं की भीड रहती है। यहां पर भगवान श्री शंकरजी एवं भगवान श्री हनुमान जी का भी मंदिर है।
मां ललिताम्बा देवीजी का मंदिर मातृधाम कातलबोडी :—-सिवनी से छिन्दवाडा रोड पर लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर मुख्य मार्ग से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कातलबोडी स्थित है। ग्राम में मॉ ललिताम्बां देवी का मंदिर है। ग्राम कातलबोडी शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद जी महाराज जी की माता जी का जन्म स्थान का गांव है। महाराज जी  ने यहां पर भव्य देवीजी का मंदिर बनाया है। इसीलिये इस स्थान को मातृधाम के नाम से जाना जाता है।  यहां भक्त हमेशा आते रहते है। यहां पर दोनों नवरात्र के समय मेला लगता है। मंदिर में अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित है। मंदिर के पास में एक कुण्ड भी बना हुआ है। यहां पर स्वंय के वाहन से पहुंचा जा सकता है।
मां अम्बामाई देवीजी का मंदिर आमागढ :– सिवनी से कटंगी बालाघाट रोड पर मुख्यालय से 20 कि.मी. की दूरी पर आमागढ के पास मुख्य मार्ग से दो मि.मी. की दूरी पर जंगल में अम्बामाई का प्रसिद्व मंदिर है। यहां पर नवरात्र में मेला लगता है। यहां पर एक छोटा सा झरना (नदी) वर्ष भर बहता रहता है। जिसका पानी दुधिया सफेद दिखाई देता है, परन्तु बर्तन अथवा हाथ में लेने पर सामान्य पानी के समान दिखाई देता है। यहां पर तत्कालीन  विधायक द्वारा जीर्णोद्वार कराया गया है। मंदिर के पास नदी के उसपार पंचमुखी हनुमानजी का प्रसिद्व मंदिर है। यह पर्यटन का मुख्य केन्द्र है यहां स्वंय के वाहन से पहुंचा जा सकता है। अम्बामाई मंदिर से थोडी नीचे आगे जाने पर नान्ही कन्हार जल प्रपात है जहा पर दो चट्टानों के मध्य से पानी बहता है।
शहीद स्मारक स्थल टुरिया :-भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय सिवनी में भी स्वतंत्रता की अलख ग्रामीणों ने जगाई है। सिवनी में सिवनी से नागपुर रोड पर विकासखंड कुरई में जिला मुख्यालय से लगभग 50 कि.मी. की दूरी पर जिले की सीमा पर बसे हुए ग्राम खवासा से पश्चिम दिशा में लगभग 12 कि.मी. की दूरी पर पेंच राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र के ग्राम टुरिया बसा है। खवासा के मूका लोहार और उनके साथियों ने 9 अक्टूबर सन् 1931 के वन आंदोलन के समय ग्रामीणों ने अंग्रेजी शासन के कानून के खिलाफ जाकर वन में घास काटकर आंदोलन की शुरूआत की थी। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर श्री सी.मेन. के निर्देश पर पुलिस द्वारा ग्रामीणों पर लाठी एवं गौली चलाई गई थी जिसमें एक आदिवासी पुरूष एवं तीन महिलायें शहीद हुई थी। इन शहीदों में  श्रीमती मुड्डोबाई खामरी, श्रीमती रेनीबाई खम्बा, श्रीमती देभोबाई भीलबा तथा यहां श्री बिरजू भोई मुरझोड शहीद हुए थे।  ग्राम टुरिया में शहीद स्मारक स्मारक बनाया गया है। यहां पर शहीदों की याद में 9 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शहीद मेला भरता है। वर्ष 2011 में 9 अक्टूबर को राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन के सहयोग से पहली बार भव्य शहीद मेला का आयोजन किया गया था। जिसमें म.प्र. शासन के आदिम जाति कल्याण मंत्री कुंवर विजय शाह एवं लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एवं सहकारिता मंत्री श्री गौरीशंकर बिसेन के अलावा अन्य जनप्रतिनिधि, ग्रामीण जन एवं जिला प्रशासन के अधिकारी उपस्थित थे। इस मेला में आदि जाति कल्याण मंत्री द्वारा घोषणा की गई कि आगामी वर्ष से शासन के खर्च से हर वर्ष शहीद मेला का आयोजन व्यापक स्तर पर किया जायेगा।
पर्यटन स्थल अमोदागढ छुई — सिवनी से मंडला रोड पर लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर छुई ग्राम बसा है। इस ग्राम से पूर्वी दिशा में लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर प्राकृतिक घटाओं से घिरा क्षेत्र अमोदागढ है। यहां पर हिर्री नदी का बहाव बहुत गहरा है, शीतल जल, पहाड एवं वृक्षों से घिरा यह क्षेत्र बहुत ही सुन्दर है। यहां शाम 4 बजे से ही अंधेरा होने लगता है। ऊचे-ऊचें पहाड एवं पेड है। यहां पिकनिक मनाने का मनोरम स्थल है। यहां स्वंय के वाहन से पहुंचा जा सकता है।
पायली रेस्ट हाउस घंसौर सिवनीः– मुख्यालय से लगभग 100 कि.मी. की दूरी पर स्थित विकासखंड घंसौर है। यहां खंड मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. की दूरी पर उत्तर दिशा में ग्राम पायली है। यहां पर पहाडी पर रेस्ट हाउस बनाया गया है। यहां पहाड एवं बेड -2 वृक्ष है। सामने नर्मदा नदी का बरगी डेम का पानी भरा है। यहां बीच-बीच में अनेक छोटे-छोटे टापू बने है। प्राकृतिक नजारा पहाड, वृक्ष,पानी एव ंनाव दिखाई देती है। जहां तक नजारा जाता है, पानी ही पानी दिखाई देता है। रेस्ट हाउस की भूमि का स्थल जिला सिवनी कहालाता है उसके बाद पानी ही पानी भरा है, पानी के उस पर बरगी डेम जबलपुर जिला स्थित है।
भीमगढ बांध छपारा :– जिला मुख्यालय से लगभग 35 कि.मी. की दूरी पर जबलपुर मार्ग पर विकासखंड छपारा बसा है, छपारा से लगभग 20 कि.मी. की दूरी पर पूर्वी दिशा में बसे ग्राम भीमगढ में एशिया का सबसे बडा मिट्टी का बांध है। यहां जलभराव क्षेत्र लगभग 19 मील है। यहां पर वर्षाकाल एवं शीत ऋतु में बहुत अच्छा लगता है। नहरे बनी हुई है जिससे सिंचाई होती है। भीमगढ बांध के पास पहाडी पर रेस्ट हाउस भी बनाया गया है। यहां से डेम का पूरा नजारा बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है। जहां तक नजर जाती है पानी ही पानी नजर आता है। बांध निर्माण हो जाने से नहरे बनाई गई है। इन नहरों से सिंचाई होती है तथा भरपूर फसल की पैदावार होती है। इससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार आया है।
रिछारिया बाबाजी का मंदिर धनौरा :– सिवनी जिले के विकासखंड धनौरा में रिछारिया बाबा का बहुत ही प्रसिद्व, ऐतिहासिक एवं धार्मिक मंदिर है यहां पर दीपावली के बाद 15 दिन का बहुत बडा मेला भरता है। मेला में बहुत दूर-दूर से लोग आते है। यहां पर बडी-बडी दुकानें तथा झूला आदि लगते है। ग्रामीणजन मेला में खरीददारी करते है तथा रिछारिया बाबा का पूजन अर्चन भी करते है। जिनकी मन्नते पूरी हो जाती है, वह लोक मेला स्थल पर भंडारा भी करते है। मुख्य मंदिर में काले पत्थर की भगवान विष्णु की अष्टभुजी मूर्ति स्थापित है और मंदिर के आस-पास अन्य मूर्तियां भी स्थापित है। यह मंदिर पुरातत्व के महत्व को दर्शाता है मूर्तियां एवं अन्य अवशेष लगभग 10 वी शताब्दी के ऐसा पुरातत्व विभाग द्वारा वहां पर लिखा गया है। मंदिर के पास एक छोटा सा तालाब भी है जिसमें लोग स्नान करते है, इसके बाद मंदिर में पूजा करते है। कहा जाता है कि मूर्तियां एवं अन्य अवशेष मंदिर के पास स्थित तालाब से खुदाई में प्राप्त हुए थे। जिसे ग्रामीणों द्वारा वहीं स्थापित कर मंदिर बना दिया गया है। यह मंदिर आस्था का केन्द्र है। मंदिर में स्थित मूर्ति का नाम रिछारिया बाबा कैसे पडा इस विषय में कोई अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती।
रिछारिया बाबा का मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर बसे विकासखंड धनौरा से पश्चिम दिशा में दो किलोमीटर की दूरी पर बसे ग्राम पिपरिया नाई ग्राम से पश्चिम दिशा में सालीबाडा एवं ग्वारी ग्राम से होते हुए एक घाटी पार करने पर लगभग रिछारिया बाबा का मंदिर स्थित है। विकासखंड धनौरा से मंदिर की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। सिवनी जिला मुख्यालय से लगभग 60 कि.मी. की दूरी पर बसे विकासखंड लखनादौन से पूर्व दिशा में लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर बसे कहानी ग्राम से तथा लखनादौन से पूर्व दिशा में बसे ग्राम सिहोरा से भी रिछारिया बाबा के मंदिर स्वंय के वाहन से पब्लिक ट्रान्सपोर्ट से पहुंचा जा सकता है।
सिवनी जिला मुख्यालय के पर्यटन, दर्शनीय एवं धार्मिक स्थलः– सिवनी जिला मुख्यालय में अनेक धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल है। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित है।
ऐतिहासिक दलसागर तालाब :- शासकीय बस स्टेंड से 200 मीटर की दूरी पर है। यहां तालाब के बीच में टापू बना है। तालाब राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे लगभग 50 एकड भू क्षेत्र में फैला है। तालाब के किनारे सुन्दर घाट, स्वच्छ परिसर एवं बीचों बीच वन टापू पर हरे भरे खूबसूरत पेड लगे है। नौकाविहार की सुविधापूर्ण व्यवस्था होने के कारण यह एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हुआ है। यह जिले की एक ऐतिहासिक धरोहर तथा सिवनी नगर की पहचान है। दलसागर तालाब के संबंध में पहला मत यह है कि इसका निर्माण गढ मंडला के गौंड शासक और वीरांगना रानी दुर्गावती के पति श्री दलपत शाह ने किया था। दूसरा मत यह है कि इसे स्थानीय दलसा गोली ने बनवाया था। अनुमानतः यह तालाब 13 वीं एवं 14 वीं शताब्दी के मध्य बनाया गया है। सन् 1864 में तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर कर्नल थामसन ने इस तालाब के चारों ओर पक्के घाट बनवायें थे। तालाब से शाम के समय पश्चिम दिशा में सूर्यास्त का मनोरम दृष्य देखने के लिए तालाब में एक अर्द्व टापू बनाया गया था जो आज भी विद्यमान है। सन् 1904–05 के आसपास इस जलाशय को शुद्व जल से भरने के लिये बाबरिया तालाब से एक पाईप लाइन जोडी गई थी। सन् 1983 में तत्कालीन कलेक्टर श्री एम.पी.राजन ने इसका सौंदर्यीकरण कराकर इसे प्रदूषण से मुक्त कराया था। चारों ओर बाउन्ड्री वाल उठाकर  लोहे के जाली लगवाई और बबरिया तालाब से पाईप लाईन के माध्यम से स्वच्छ जल भरवाया गया था। सन् 2010-11 में तालाब का सौंन्दर्यीकरण का कार्य करवाया गया। तालाब का पूरा पानी निकालकर इसका गहरीकरण भी किया गया।
विशेष :- हमारे पूर्वज बहोत ही दूरदर्शी र्थे जिन्होंने भविष्य में जलसंकट का अनुमान लगाकर लगभग 600 वर्ष पूर्व दलसागर तालाब का निर्माण करवाया था। सन् 1919-20 के नजूल के खसरे के अनुसार दलसागर तालाब ब्लाक में .09 प्लाट नं. 02 में स्थित है। इसका कुल रकबा 47.16 एकड (0.25 डिसमिल) है। तालाब 11023.92 वर्ग फीट पर निर्मित है।
दिगम्बर जैन मंदिरः– सिवनी नगर के मध्य में शुक्रवारी में स्थित दिगम्बर जैन मंदिर अपनी भव्यता एवं विशालता के लिऐ नगर व जिले में ही नही अपितु समूचे प्रदेश में विख्यात है। भारत में स्थित जैन मंदिरों के इतिहास में सिवनी के कलात्मक जैन मंदिर का प्रमुखता से उल्लेख हुआ है। इसका निर्माण ईस्वी सन् 1813 से प्रारंभ होकर अनेक चरणों में अलग-अलग समय में सम्पन्न हुआ है।
यह 17 मंदिरों का समूह है। फिर भी दर्शक जब उन्हें देखता है तो उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक ही समय में बना है। इन मंदिरों में 24 तीर्थकरों की पट्मासन एवं खड्गासन पाषाण एवं धातु मूर्तिया हैं। इस मंदिर के एक शिखर में उत्कीर्ण भगवान श्रीराम, लक्ष्मण तथा माता सीता के साथ हनुमान जी की प्रतिमा, गोवर्धनधारी भगवान श्रीकृष्ण, लक्ष्मीजी, कालभैरव और बाबा रामदेव आदि देवताओं की मूर्तियां है, जो सिवनी में हिन्दु जैन सामजस्य का अप्रितम उदाहरण है। इस मंदिर में कुल 23 वेदिया हैं जिनमें 24 तीर्थकारों के अलावा भगवानी बाहुबली की खडगासन प्रतिमा भी है। इस मंदिर के सामने इंद्र भवन नामक इमारत भी है। जिसमें रजत निर्मित सुंदर एवं भव्य रथ रखा जाता है। बडे जैने मंदिर के पीछे एक छोटा जैन मंदिर भी है। यहां प्रतिवर्ष महावीर जयंती के समय यह रजत रथ भव्य शोभायात्रा के साथ जनाकर्षण का केन्द्र हुआ करता है। इसके अतिरिक्त जिले में एक श्वेताम्बर जैन मंदिर भी है।
शासकीय सुधारालय :– महाकौशल क्षेत्र में सन 1836 के आसपास ठगों और पिंडारियों का आतंक था। ये लूटपाट कर लोगों को मार डाला करते थे। तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने कमिश्नर श्री सिलीमन को उनके दमन के लिये नियुक्त किया। कमिशनर ने एक्ट बनाकर ठगों और पिडरियों का अंत किया । उनके बच्चों के लिये जो कि जुर्म की दुनिया में सांस लेते-लेते स्वंय भी मुजरिम बन गये थे और अपराध जगत में कदम रख चुके थे उनके लिये सन. 1836 में स्पेश ट्रेनिंग कालेज के सामने एक दरी बनाने का प्रशिक्षण केन्द्र खोला था। इसे दरीखाना कहा जाता है। बाद में अन्य प्रशिक्षण भी दिये जाने लगे। सन् 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यह शिक्षा विभाग के अंतर्गत आ गया और इसका नाम शासकीय सुधारालय हो गया। सन् 1942 में स्वतंत्रता आन्दोलन के बाद सिवनी जेल में देश की अनेक महान हस्तियां रह चुकी हैं। उस समय पं. रविशंकर शुक्ल भी कुछ समय के लिए जेल में बंद रहे। उस समय अंग्रेज अधिकारियों ने सभी स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों से भविष्य में आन्दोलन न करने की घोषण्उ◌ा पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए आदेशित किया । किन्तु पं. रविशंकर शुक्ल ने इस तरह का आदेश मानने और घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने से साफ इंकार कर दिया। पं. शुक्ल तनदुरूस्त और हष्ट पुष्ट ऊचे  पूरे कद्दावार जवान थे। अतः कुछ जेल रक्षकों ने उन्हें पटककर जबदस्ती अंगूठे का निशान अंकित कराने का प्रयास किया, और अंगूठा लगवा लिया। इसी समय उन्होंने इस घटना से विक्षोभित होकर अन्य स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों के समक्ष घोषणा की कि दैवयोग से भविष्य में मैं कुछ बना तो सिवनी जेल को बंद कराउंगा और बच्चों के अध्ययन के लिए यहां कुछ व्यवस्था कराऊंगा। देश की आजादी के बाद सन् 1948 में महारानी लक्ष्मीबाई कन्या उ.मा. विद्यालय सिवनी के लोकार्पण समारोह में घोषणा की कि सिवनी जेल बंद कर छिन्दवाडा स्थानांतरित किया जायेगा और जबलपुर का दरीखाना सिवनी जेल में स्थानांतरित किया जायेगा। सन 1956 से जबलपुर स्थित दरीखाने का स्थानांतरण सिवनी हो गया और इसकी व्यवस्था जिला शिक्षा विभाग को सौंप दी गई। सन् 1977 तक इसकी समस्त व्यवस्था शिक्षा विभाग के अंतर्गत रही। शिक्षा विभाग के सर्वश्रेष्ठ पदाधिकारियों का पदांकन यहां होते रहा।
सर्वप्रथम सुधारालय के अधीक्षक पद पर श्री जी.वाय. तखीवाले थे बाद में वे शिक्षा विभाग के डी.पी.आई. के पद से सेवानिवृत्त हुए। सिटी कोतवाली के पास शासकीय सुधारालय है कम उम्र के बालक जो अपराध करते है उनको यहां निरूद्व रखा जाता है। यहां पर रोजगार प्रशिक्षण भी दिया जाता है। सुधारालय अंग्रेजों के समय का जेल है। इसमें सुभाषचंद बोस के अतिरिक्त अनेक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कैद मे रहें। इस जेल में पीर पगारों नाम का एक बहुत ही लम्बा चौडा कैदी भी था जिसके लिये अलग से कमरा बनाया गया था।
सिवनी नगर के चर्च : सिवनी नगर में ईसाई धर्म को मानने वालों के दो चर्च है। इनमें एक  प्रोटेस्टेंट तथा दूसरा कैथोचिक चर्च है। सन. 1876 में कचहरी चौक के पास  नेशनल हाईवे मार्ग नं.  7 पर बांए हाथ की ओर स्काटलेंड मिशनरी द्वारा स्थापित एक सुन्दर चर्च विद्यमान है। 1922 में इसका पुनर्निर्माण किया गया क्योंकि यह पहले जीर्णशीर्ण स्थिति में था। इस जिले में ईसाई लोग अल्प संख्यक है।
प्रोटेस्टेंट – सन् 1872 में पादरी एंडरसन महोदय सिवनी आये। उन्होंने 1875 में स्काटलेंड मिशन की स्थापना की और लोगों को ईसाई बनाने का कार्य किया। इसी समय नगर में एक ईसाई अनाथाश्रम स्थापित किया गया । श्री एंडरसन महोदय के बाद श्री फैलेनसर साहब पादरी बनकर आये। 18 जनवरी 1899 को श्री मैकलीन साहब पादरी बने। इनके कार्यकाल में ही मिशन हाई स्कूल तथा मिशन महिला अस्पताल की स्थापना हुई। पहले मिशन अस्पताल दुर्गा चौक में डा. चक्रवर्ती के मकान के पास प्रारंभ हुआ था। उसके बाद मोटर स्टेण्ड के समीप अस्पताल भवन बनने के बाद अस्पताल वहां लगने लगा। मैकलीन साहब को ब्रिटिश सरकार की ओर से केशरे हिन्द की पदवी तथा स्वर्ण पदक प्रदान किया गया था। मैकलीन साहब की मृत्यु सिवनी में एक मोटर दुर्घटना में हुई थी। इनके पश्चात श्री टी.ई. राबर्टसन पादरी पद पर नियुक्त हुए उनके पश्चात क्रमशः जे.के.सिंह, ईमानवल दयाल तथा आनंद जॉन पादरी बने।
कैथोलिक चर्च — कैथोलिक ईसाई मतावलम्बियों द्वारा एक कैथोलिक चर्च की स्थापना की गई जिसमें निरंतर प्रति रविवार को प्रार्थना होती है। राष्ट्रीय राजमार्ग नं. 7 पर सर्किट हाऊस के पास में क्राइस्ट चर्च भवन यहां से गुजरने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। सन् 1898 में यह चर्च अंग्रेज अधिकारियों के लिए चर्च ऑफ इंगलैंड द्वारा निर्मित किया गया था। इसमें केवल अंग्रेज अधिकारी ही प्रवेश पाते थे। इस चर्चा में प्रति रविवार मात्र 10-20 अंग्रेज ही आते थे। इसका संचालन एवं आराधना हेतु नागपुर से पादरी आते थे। इस काल में इस चर्च तथा अंग्रेजों के लिए निर्मित कब्रिस्तान (स्थानीय एम.एल.बी. कन्या शाला के पीछे) का रखरखाव केन्द्रीय सरकार के धर्म संबंधी विभाग द्वारा किया जाता था। ब्रिटिश काल में सेना का पडाव स्थल होने के कारण बिटिश सैन्य अधिकारी भी यहां अपनी उपासना करते थे। अतः केन्द्रीय सरकार का रक्षा विभाग का भी इसके संचालन में योगदान था। सोलंहवी शताब्दी के यूरोपीय वास्तुकला पर आधारित यह चर्च आकर्षक रखरखाव के लिए विख्यात रहा है। यहां की खिडकियों पर विदेशी सुंदर कांच लगे है तथा फर्श पर मखमल का गलीचा बिछा हुआ है।
मोहम्मद शाह वली की दरगाह ज्यारत :- सिवनी से जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर विश्राम भवन से एक कि.मी.दूर ज्यारत नाके के पास मोहम्मद शाह वली उर्फ मिया साहब नामक एक मुस्लिम पीर की दरगाह है। इसका निर्माण 18 वीं सदी में हुआ। मोहम्मद शाह वली ने सिवनी के तत्कालीन दीवान सुजात अली की जान लेने पर उतारू एक पागल हाथी को डांट कर ही शांत कर दिया गया था। नागपुर के राजा रघ्घूजी भोंसले द्वितीय को जब नागपुर में एक बार जहर दिया जा रहा था तो मोहम्मद शाह वली ने सिवनी में बैठे-बैठे सारा हाल जान लिया और सिवनी के दीवान को राजा के प्राणों की रक्षा करने के लिये नागपुर भेजा। जिससे षडयंत्रकारियों का षडयंत्र विफल हुआ और रघ्घू जी भोंसले द्वितीय के प्राण बच गये। अतः दीवान सुजात अली ने याकूब अली शाह वल्द दीवान मोहम्मद अली शाह को तीन गांव क्रमशः ज्यारत, बिठली तथा डुंगरिया दरगाह की देखरेख, धार्मिक कार्य सम्पन्न करने एवं उर्स की व्यवस्था के लिये प्रदान किये थ्रे। श्री याकूब अली शाह खेवट थे। दीवान साहब द्वारा यह दान उन्हें सन् 1839 में दिया गया था ।
सिवनी नगर में उक्त प्रमुख स्थलों के अतिरिक्त और भी प्रमुख स्थल है। इनमें स्टेशन वार्ड में मठ मंदिर एवं माता दिवाला मंदिर, शुक्रवारी चौक के पास महावीर टाकीज के सामने श्री सिद्व पंचमुखी हनुमान मंदिर, चौक में ही श्रीराम मंदिर तथा चौक से उत्तर दिशा की ओर कुछ दूरी पर प्रसिद्व काली मां का मंदिर, बारापत्थर में हाउसिंग बोर्ड कालोनी में मरहाई माता मंदिर, भैरोगंज में महाविद्यालय के पास महामाया मंदिर, सिटी मेन पोस्ट आफिस के पीछे पंजाबी गुरूद्वारा तथा शीतला माता का मंदिर एवं शहर से कुछ ही दूरी पर जबलपुर मार्ग पर भगवान साईनाथ का भव्य मंदिर जैसे धार्मिक स्थल विद्यमान है।
सिवनी की छोटी लाईन नेरोगेज रेल्वे स्टेशनः–सिवनी जिला मुख्यालय में शहर से नागपुर मार्ग पर छोटी रेल्वे लाईन का रेल्वे स्टेशन है। यह मार्ग सिवनी से पूर्ण दिशा में नैनपुर, मंडला तथा  जबलपुर तक तथा पश्चिम दिशा में छिन्दवाडा जिला होते हुए नागपुर महाराष्ट्र तक जाता है।
सिवनी में वर्ष 1904 में बंगाल नागपुर रेल मार्ग का निर्माण किया गया था। इस मार्ग में नैरोगेज छोटी लाईन बिछाई गई थी। इस रेल मार्ग में सिवनी से जबलपुर व्हाया नैनपुर, सिवनी से मंडला, व्हाया नैनपुर, सिवनी से नागपुर व्हाया छिन्दवाडा तथा सिवनी से बालाघाट व्हाया नैनपुर मार्ग है। जिले में रेल्वे की लम्बाई 110 मील है। छोटी रेल्वे लाईन से यात्रा करने पर प्राकृतिक दृश्य बडे ही मनमोहक दिखाई देते है। भारत सरकार द्वारा छिन्दवाडा से मंडला व्हाया सिवनी -नैनपुर बडा मार्ग बनाने का सर्वे कार्य किया जा रहा है।
मिशन हाई स्कूल सिवनी :– सिवनी शहर में एक बहुत ही प्रसिद्व मिशन हाई स्कूल है। यह शाला भवन लगभग 111 वर्ष (वर्ष 2012) पुराना है। इस शाला भवन का  निर्माण वर्ष 1901 में प्रारंभ किया गया था। यह भवन 5 वर्ष में बनकर तैयार हो गया था।
श्री जान मैकलीन लगभग 22-23 वर्ष की उम्र में वर्ष 1812 में चर्च आफ स्काटलेंड के तीसरे पादरी बनकर आये थें।  श्री जान मैकलीन द्वारा पूर्व में स्थापित मिशन कन्या शाला में ही कक्षा 9 वीं प्रारंभ की गई थी। यही से हाई स्कूल विद्यालय आरंभ हुआ। बाद में सन. 1906 में वर्तमान मिशन हाई स्कूल भवन में स्थानांतरित हो गया। मिशन शाला भवन का आकार हवाई जहाज के जैसा है। इसकी सबसे बडी विशेषता यह है कि इसमें उपयोग में लाई गई ईटे बिना प्लास्टर के जोडी गई है। लगभग 111 वर्ष बाद भी इमारत अपनी जगह पर खडी हुई है। ऐसी भव्य इमारते बहुत ही कम देखने को मिलती है। इस शाला में श्री डोनल प्रथम मानसेवी हेडमास्टर नियुक्त हुए थे। सन् 1921 तक यह विद्यालय इलाहाबाद विश्व विद्यालय से संबंध था। परीक्षा केन्द्र इलाहाबाद होता था। 1922 में यह शाला नागपुर बोर्ड के अंतर्गत आ गई। हेडमास्टर श्री डोनल की पुत्री सुश्री एफ.ओ. डोनल ने 1924 तक बडी लगन से प्रधान पाठिका का पद सम्हाला। सन् 1965 में श्री थामस ईरिक राबर्टसन हेडमास्टर बनें। आप सन. 1948 में सेवानिवृत्त हुए। इसके पश्चात श्री जे.के. सिंग प्रथम भारतीय मूल के प्रधानपाठक बनें। यह शाला सन् 1958 में नवीन पाठ्यक्रम के अंतर्गत हायर सेकेन्ड्री स्कूल में प्रोन्नत हुई। श्री जे.के. सिंग प्रिसीपल हो गये। इसी दौरान शिक्षक श्री मिश्रीलाल वर्मा को प्रथम राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन् 1966 में जे.के.सिंग प्रिसीपल को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला यह बडे ही गर्व की बात है कि एक विद्यालय में दो महान शिक्षकों को राष्ट्रपति पुरस्कार मिला |
 सिवनी जिले में पर्यटन | Travel & tourism in Seoni District

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